एक देश, एक चुनाव, क्यों है ज़रूरी, क्या है विरोध!
लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ (One Nation One Election) कराये जाने के मसले पर लंबे समय से बहस चल रही है। कुछ समय पहले दूरदर्शी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी इस विचार का समर्थन कर इसे आगे बढ़ाया है। आपको बता दें कि इस मसले पर चुनाव आयोग, नीति आयोग, विधि आयोग और संविधान समीक्षा आयोग विचार कर चुके हैं। अभी हाल ही में विधि आयोग ने देश में एक साथ चुनाव कराये जाने के मुद्दे पर विभिन्न राजनीतिक दलों, क्षेत्रीय पार्टियों और प्रशासनिक अधिकारियों की राय जानने के लिये One Nation One Election के विचार को लेकर तीन दिवसीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया था। इस एक देश में एक चुनाव करने पर हुई कॉन्फ्रेंस में कई राजनीतिक दलों ने इस प्रकार के विचार पर सहमति जताई, जबकि बचे हुए ज्यादातर राजनीतिक दलों ने इसका विरोध ज़ाहिर किया एक देश, एक चुनाव के विचार यानी देश की लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने के मसले को लेकर एक लंबे समय से राजनितिक दलों में बहस चल रही है, पार्टियों द्वारा इसके समर्थन और विरोध को लेकर तमाम तर्क दिए जाते हैं इस मामले पर राजनीतिक दलों की राय शायद एक नहीं दिख रही विपक्षी दलों का कहना है कि यह विचार लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ ज़ाहिर होता है। जाहिर है कि जब तक इस को लेकर सभी की एक आम राय नहीं बनती तब तक इसे लागु कर पाना मुश्किल ही होगा
तो आइये हम इस लेख से कई सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश करे
जैसे कि ......
1- एक देश एक चुनाव क्यों ज़रूरी है ?
2- पृष्ठभूमि क्या है? क्या है आधार?
3- एक साथ चुनाव के विचार के पक्ष में क्या तर्क हैं?
4- एक देश एक चुनाव का विरोध क्यों?
तो अब एक-एक कर इन सभी सवालों का जवाब को तलाश करने की कोशिश करते हैं, हो सकता है मेरा ये विचार आपके विचार से मेल न खाता हो पर इस विषय पर गंभीरता से विचार तो किया जा सकता है
1-एक देश एक चुनाव क्यों ज़रूरी है?
किसी भी जीवंत लोकतंत्र में चुनाव एक अनिवार्य प्रक्रिया है। स्वस्थ एवं निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की आधारशिला होते हैं। भारत जैसे विशाल देश में निर्बाध रूप से निष्पक्ष चुनाव कराना हमेशा से एक चुनौती रहा है। अगर हम देश में होने चुनावों पर नजर डालें तो पाते हैं कि हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। चुनावों की इस निरंतरता के कारण देश हमेशा चुनावी मोड में रहता है। इससे न केवल प्रशासनिक और नीतिगत निर्णय प्रभावित होते हैं बल्कि देश के खजाने पर भारी बोझ भी पड़ता है। इस सबसे बचने के लिये नीति निर्माताओं ने लोकसभा तथा देश के सभी राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने का विचार बनाया।
गौरतलब है कि देश में इनके अलावा पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनाव भी होते हैं किन्तु एक देश एक चुनाव में इन्हें शामिल नहीं किया जाता। हम आपको बता दें कि एक देश एक चुनाव का विचार लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करवाने एक वैचारिक मामला है। यह हमारे देश के लिये कितना सही और उपयोगी और कितना गलत, इस पर कभी खत्म न होने वाली बहस की जा सकती है। परन्तु इस विचार को धरातल पर लाने के लिये इसकी विशेषताओं की जानकारी होना जरूरी है।
2- पृष्ठभूमि क्या है? क्या है आधार?
एक देश एक चुनाव का विचार कोई अनूठा प्रयोग नहीं है, क्योंकि इससे पहले 1952, 1957, 1962, 1967 में ऐसा किया जा चूका है जब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाए गए थे। यह एकसाथ चुनाव का क्रम तब टूटा जब 1968-69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएँ विभिन्न कारणों से समय से पहले भंग हो गई थी। शायद जिसके बाद से ही ऐसा होने लगा आपको बता दें कि 1971 में हुए लोकसभा के चुनाव भी समय से पहले हो गए थे। जाहिर है जब इस प्रकार चुनाव पहले भी करवाए जा चुके हैं तो अब करवाने में क्या समस्या है।
इसको लेकर एक तरफ जहाँ इस मामले के कुछ जानकारों का मानना है कि अब आज के दौर में जब देश की जनसंख्या बहुत ज्यादा हो गई है, इसल शायद अब एक साथ चुनाव करा पाना संभव नहीं है और इसमें कठिनाई हो सकती है , तो वहीं दूसरी तरफ कुछ जानकार कहते हैं कि अगर देश की जनसंख्या बढ़ी है तो तकनीक और अन्य संसाधनों का भी विकास हुआ है। इसलिए एक देश एक चुनाव की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। किन्तु इन सब से इसकी सार्थकता सिद्ध नहीं होती, इसके लिए हमें इसके पक्ष और विपक्ष में दिये गए तर्कों का विश्लेषण करना होगा।
3- एक साथ चुनाव के विचार के पक्ष में क्या तर्क हैं?
एक देश एक चुनाव के पक्ष में कहा जाता है कि यह विकासोन्मुखी विचार है। जाहिर है लगातार चुनावों के कारण देश में बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू करनी पड़ती है| इसकी वजह से सरकार आवश्यक नीतिगत निर्णय नहीं ले पाती और विभिन्न योजनाओं को लागू करने समस्या आती है। इसके कारण विकास कार्य प्रभावित होते हैं। आपको बता दें कि आदर्श आचार संहिता या मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट चुनावों की निष्पक्षता बरकरार रखने के लिये बनाया गया है।
इसके तहत निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव अधिसूचना जारी करने के बाद सत्ताधारी दल के द्वारा किसी परियोजना की घोषणा, नई स्कीमों की शुरुआत या वित्तीय मंजूरी और नियुक्ति प्रक्रिया की मनाही रहती है। इसके पीछे निहित उद्देश्य यह है कि सत्ताधारी दल को चुनाव में अतिरिक्त लाभ न मिल सके। इसलिए यदि देश में एक ही बार में लोकसभा और भारत के राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव कराया जाए तो ऐसी परिस्थिति में आदर्श आचार संहिता कुछ ही समय तक रहेगी, और इसके बाद विकास कार्यों को बिना किसी देरी के निर्बाध किया जा सकेगा। और एक साथ चुनाव होने से चुनाव के खर्चो पर भी खासा असर हो सकता है , चुनाव के लिए बार बार तैयारियों के व्यव पर भी असर हो सकता है और भी कई मामलो में इसका काफी लाभ मिल सकता है एक देश एक चुनाव के पक्ष में दूसरा तर्क यह है कि इससे बार-बार चुनावों में होने वाले भारी खर्च में कमी आएगी। गौरतलब है कि बार-बार चुनाव होते रहने से सरकारी खजाने पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता है। चुनाव पर होने वाले खर्च में लगातार हो रही वृद्धि इस बात का सबूत है कि यह देश की आर्थिक सेहत के लिये ठीक नहीं है।
a- धन,समय और संसाधन की हो सकती है बचत!
एक देश एक चुनाव के पक्ष में दिये जाने वाले तीसरे तर्क में कहा जाता है कि इससे काले धन और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में मदद मिलेगी। यह किसी से छिपा नहीं है कि चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों द्वारा काले धन का खुलकर इस्तेमाल किया जाता है। हालाँकि देश में प्रत्याशियों द्वारा चुनावों में किये जाने वाले खर्च की सीमा निर्धारित की गई है, किन्तु राजनीतिक दलों द्वारा किये जाने वाले खर्च की कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है। कुछ विश्लेषक यह मानते हैं कि लगातार चुनाव होते रहने से राजनेताओं और पार्टियों को सामजिक समरसता भंग करने का मौका मिल जाता है जाता है,जिसकी वजह से अनावश्यक तनाव की परिस्थितियां बन जाती हैं| एक साथ चुनाव कराये जाने से इस प्रकार की समस्याओं से निजात पाई जा सकती है। इसके पक्ष में चौथा तर्क यह है कि एक साथ चुनाव कराने से सरकारी कर्मचारियों और सुरक्षा बलों को बार-बार चुनावी ड्यूटी पर लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे उनका समय तो बचेगा ही और वे अपने कर्त्तव्यों का पालन भी सही तरीके से कर पायेंगे। आपको बता दें कि हमारे यहाँ चुनाव कराने के लिये शिक्षकों और सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारियों की सेवाएं ली जाती हैं, जिससे उनका कार्य प्रभावित होता है। इतना ही नहीं, निर्बाध चुनाव कराने के लिये भारी संख्या में पुलिस और सुरक्षा बलों की तैइसके अलावा बार-बार होने वाले चुनावों से आम जन-जीवन भी प्रभावित होता है।
4- एक देश एक चुनाव का विरोध क्यों?
एक देश एक चुनाव के विचार के विरोध में जानकारों का मानना है कि संविधान ने हमें संसदीय मॉडल प्रदान किया है जिसके तहत चुनाव के बाद लोकसभा और विधानसभाएँ 5 वर्षों के लिये चुनी जाती हैं, लेकिन एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर हमारा संविधान मौन है। संविधान में कई ऐसे प्रावधान हैं जो इस विचार के बिल्कुल विपरीत दिखाई देते हैं। मसलन अनुच्छेद 2 के अनुसार संसद द्वारा किसी नये राज्य को भी भारतीय संघ में शामिल किया जा सकता है और संविधान के अनुच्छेद 3 के अनुसार संसद कोई नया राज्य राज्य बना भी सकती है, जहाँ अलग से चुनाव कराने पड़ सकते हैं।
इसी प्रकार अनुच्छेद 85(2)(ख) के अनुसार राष्ट्रपति लोकसभा को और अनुच्छेद 174(2)(ख) के अनुसार राज्यपाल विधानसभा को पाँच वर्ष से पहले भी भंग कर सकते हैं। अनुच्छेद 352 के तहत युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह हो जाने की स्थिति में राष्ट्रीय आपातकाल लगाकर लोकसभा का कार्यकाल भी बढ़ाया जा सकता है। इसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार देश के राज्यों में राष्ट्रपति शासन भी लागू किया जा सकता है और ऐसी स्थिति में संबंधित राज्य के राजनीतिक समीकरण में अप्रत्याशित उलटफेर होने से वहाँ फिर से चुनाव की संभावना बढ़ जाती है। ये सारी परिस्थितियाँ एक देश एक चुनाव के नितांत विपरीत हैं।
a- क्षेत्रीय मुद्दों की अनदेखी की आशंका!
b- लोगों के प्रति जवाबदेही पर असर!
c- एक साथ में चुनाव कराने की बड़ी चुनौती!
एक देश में एक ही चुनाव के विचार के विरोध में तर्क यह दिया जाता है कि देश के संघीय ढाँचे के विपरीत होगा और संसदीय लोकतंत्र के लिये घातक कदम हो सकता है होगा। लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव एक साथ करवाने पर कुछ विधानसभाओं के मर्जी के खिलाफ उनके कार्यकाल को बढ़ाया या घटाया जायेगा जिससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। भारत का संघीय ढाँचा संसदीय शासन प्रणाली से प्रेरित है और संसदीय शासन प्रणाली में चुनावों की बारंबारता एक अकाट्य सच्चाई है। विरोध में महत्वपूर्ण तर्क यह है अगर देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए तो अधिक संभावना है कि बड़े राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जाएँ या इसके विपरीत क्षेत्रीय मुद्दों के सामने राष्ट्रीय मुद्दे अपना अस्तित्व खो दें जो की बहुत ही विचार करने योग्य है और गंभीर विषय है दरअसल लोकसभा एवं विधानसभाओं के चुनाव का स्वरूप और मुद्दे बिल्कुल अलग होते हैं। लोकसभा के चुनाव जहाँ राष्ट्रीय सरकार के गठन के लिये होते हैं, वहीं विधानसभा के चुनाव राज्य सरकार का गठन करने के लिये होते हैं। इसलिए लोकसभा के चुनाव में देश के राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों को प्रमुखता दी जाती है, तो वहीं विधानसभा के चुनावों में क्षेत्रीय महत्त्व के अलग मुद्दे रहते हैं।इसके विरोध में तर्क यह है कि लोकतंत्र को जनता का शासन कहा जाता है। देश में संसदीय प्रणाली होने के नाते अलग-अलग समय पर चुनाव होते रहते हैं और जनप्रतिनिधियों को जनता के प्रति लगातार जवाबदेह बने रहना पड़ता है। इसके अलावा कोई भी पार्टी या नेता एक चुनाव जीतने के बाद निरंकुश होकर काम नहीं कर सकता क्योंकि उसे छोटे-छोटे अंतरालों पर किसी न किसी चुनाव का सामना करना पड़ता है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर दोनों चुनाव एक साथ कराये जाते हैं, तो ऐसा होने की आशंका बढ़ जाएगी।एक देश एक चुनाव के विरोध में पाँचवा तर्क यह दिया जाता है कि भारत जनसंख्या के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। लिहाजा बड़ी आबादी और आधारभूत संरचना के अभाव में देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव साथ साथ कराना तार्किक प्रतीत नहीं लगता।
One Nation One Election : निष्कर्ष
हलाकि एक देश एक चुनाव के विचार की अवधारणा में कोई बड़ी खामी नहीं दिखती है, लेकिन कुछ पार्टियों द्वारा जिस प्रकार से विरोध हो रहा है उससे प्रतीत होता है कि इसे जल्दी निकट भविष्य में लागू कर पाना काफी हद्द तक संभव नहीं है।इसमें कोई दो राय नहीं कि विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत हर समय चुनावी चक्रव्यूह में घिरा हुआ नजर आता है। भारत में चुनावों के इस चक्रव्यूह से देश को निकालने के लिये एक व्यापक चुनाव सुधार अभियान चलाने की ज़रूरत प्रतीत होती है। जिसके लिए देश में जनप्रतिनिधित्व कानून में सुधार, देश में कालेधन पर रोक, हलाकि इसमें बहुत सुधार भी हुआ है और राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण और माफियाओ पर रोक, जनता के बीच में राजनीतिक जागरूकता लाना शामिल किया जा सकता है जिससे समावेशी लोकतंत्र की स्थापना की जा सके। यदि देश में 'एक देश एक कर' यानी GST, एक आधार कार्ड लागू हो सकता है तो आखिर देश एक चुनाव क्यों नहीं हो सकता? इसपर विचार और मंथन का अब शायद समय आ गया है कि सभी राजनीतिक दल खुले मन और सही भावना से एक चुनाव के मुद्दे पर राय करें ताकि इसे अमलीजामा पहनाया जा सके और ऐसा कर पाना संभव हो , हलाकि इसपर राजनितिक पार्टियों के अपने अलग विचार और तर्क है जिसमे से कई सही भी प्रतीत होते है और और शायद कुछ को सुधार करके बदल भी सकते है, हम तो यही चाहते है की जो इस देश के हित में हो उसको अमल में ज़रूर लाना चाहिए और सभी को खुले मन से उसका स्वागत करना चाहिए
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