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जातीय जनगणना कराए जाने की बीएसपी ने मांग की


बिहार में जातीय सर्वे पर लगी रोक हटने से उत्तर प्रदेश में भी सियासी जंग एक बार फिर से शुरू हो चुकी है......देश में 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ही आखिर जातिगत जनगणना की मांग क्यो उठने लगी ..... वह राजनीति दल जिनकी राजनीति केवल जाति के गुणा भाग पर ही चलती है.....शायद उन दलों को जातिगत जनगणना के बहाने अपना सियासी निशाना साधने में आसानी हो.....समाजवादी पार्टी के बाद अब बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने उत्तर प्रदेश में जातिगत जनगणना कराए जाने का मुद्दा उठाया है...क्या जाति की जनगणना होने से समाज के उन लोगों का भी फायदा होगा जिसके वो हकदार है ....जातिगत जनगणना क्या है.... जातिगत जनगणना से क्या फायदा होगा, या होगा नुकसान, या फिर ये भी केवल सियासत है......जानेंगे इस खास रिपोर्ट में ....

उत्तर प्रदेश में फिर उठी जातीय जनगणना की मांग

बिहार में रोक हटने के बाद उत्तर प्रदेश में भी मांग 

जातीय जनगणना कराए जाने की बीएसपी ने मांग की

वैसे तो देश में आमतौर से लोगों की सामान्य जनगणना कराई जाति है जिससे देश में रह रहे लोगों में महिलाओं, पुरुषों, बच्चों की संख्या का पता लगाया जा सके .....लेकिन जाति की जनगणना होने से हर प्रदेश में कौन सी जाति के कितने लोग है इसका भी पता चल सकेगा....जाति की जनगणना से एक विशेष क्षेत्र में किस किस जाति के कितने महिला या पुरुष है इसका पता चल सकेगा ....ताकि उस जाति को सरकार द्वारा क्या मदद दी जानी चाहिए या उस क्षेत्र में कितनी मदद की जरूरत है इसे भी पता लगाने में आसानी होगी....जिससे आर्थिक रूप से पिछड़ी जाति के लोगों का विकास किए जाने में आसानी होगी.....और उन्हे विकास की मुख्य धारा से जोड़े जाने में भी जातीय जनगणना से काफी मदद मिलेगी.....जातीय जनगणना से विशेष जाति के लोगों को सरकारी मदद या फायदा पहुंचाया जा सकता है....लेकिन शायद राजनीतिक पार्टियां तो इसे किसी और  नजरिये से देखती है....ताकि अपने वोट बैंक की राजनीति को जातियों से जोड़ा जा सके और इसका फायदा केवल और केवल चुनाव में ही उठाया जा सके..........  

"उत्तर प्रदेश में जातीय जनगणना की राजनीति " 

जातीय जनगणना से मिलेगा लाभ या होगी सिर्फ राजनीति ?

क्या जातीय जनगणनी कराए जाने की जरूरत है !

लेकिन राजनेताओं के लिए जातीय सर्वे क्यों जरूरी है ? उत्तर प्रदेश में जातियों का हमेशा से बेहद अहम रोल रहा है, हिंदुत्व की राजनीति का झंडा उठाने वाली सत्ताधारी पार्टी को रोकने के लिए विपक्षी दलों का सबसे धारदार हथियार जातियां ही हैं, विरोधी दलों के अलावा सत्ता के साथ खड़े दल भी इस मामले पर खुलकर समर्थन करते रहे हैं, उनकी मजबूरी भी है क्योंकि उनकी राजनीतिक जमीन जातियों के गणित पर ही आधारित है और वो भी पिछड़ी जाति, ऐसे में वो कमज़ोर जातियों को इसी बहाने अपने साथ जोड़े रखने के लिए समय समय पर ये मांग उठाते रहे हैं, सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी जातीय जनगणना के मामले पर बेहद सजग है........उसे मालूम है कि जातीय गणना का विरोध उसे नुकसान पहुंचा सकता है इसलिए पार्टी खुल कर सामने नहीं आती.....सरकार भी खामोश रहती है लेकिन पार्टी के पिछड़े वर्ग से जुड़े नेता इसका समर्थन करते रहते हैं जिससे उनकी छवि पिछड़े विरोधी के तौर पर न बन जाए और इसका लाभ उन्हे चुनाव में मिल सके......

जातीय जनगणना से क्या आम जनता को होगा फायदा ? 

जातियों की संख्या पर सबके अपने अलग दावे 

यादव,कुर्मी,जाट,लोध,निषाद,राजभर बड़ा वोटबैंक !

भारत की राजनीति के सबसे अहम राज्य उत्तर प्रदेश की कुल आबादी लगभग 25 करोड़ है..... इसमें जातियों को लेकर अलग-अलग नेताओं के अलग-अलग दावे हैं........ हर नेता अपनी जाति की संख्या को अधिक बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ता ताति चुनाव में उस जाति के आधार पर लाभ पाया जा सके ......अकेले उत्तर प्रदेश में ही यादव, कुर्मी, जाट, लोध, निषाद, राजभर समेत 80 से ज़्यादा पिछड़ी जातियों का एक बड़ा वोटबैंक है..... पिछड़ी जातियों की संख्या 40 से 55 प्रतिशत तक बताई जाती रही है.....वहीं दलितों की आबादी अनुमान से करीब 20 प्रतिशत बताई जाती है..... हालांकि कौन सी जाति की कितनी आबादी है, इसको लेकर नेताओं के अपने अपने दावे होते हैं...... जैसे डॉ संजय निषाद दावा करते रहे हैं कि अकेले निषादों की आबादी यूपी की कुल आबादी का 18% है........ इस दावे का कोई आधिकारिक आधार नहीं है लेकिन दबाव की राजनीति के लिए ये आंकड़े तैयार किये जाते हैं और राजनीति में अपनी काफी अहम छाप भी छोड़ते है...........

80 से ज़्यादा पिछड़ी जातियों का बड़ा वोटबैंक !

पिछड़ी जातियां 40-55 प्रतिशत का अनुमान !

"अलग-अलग नेताओं के अलग-अलग दावे "

उत्तर प्रदेश में पहले समाजवादी पार्टी से अखिलेश यादव ने जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया था ....जिसके बाद एक खास वर्ग की भलाई का हवाला देते हुए बीएसपी सुप्रीमो मारावती ने भी जातीय जनगणना की मांग को उठाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति को फिर से आक्सीजन दे दी है.......बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने एक ट्वीट करके कहा कि ओबीसी समाज की आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक स्थिति का सही ऑकलन कर उसके हिसाब से विकास योजना बनाने के लिए बिहार सरकार द्वारा कराई जा रही जातीय जनगणना को पटना हाईकोर्ट द्वारा पूर्णत वैध ठहराए जाने के बाद अब सबकी निगाहें यूपी पर टिकी हैं कि यहाँ यह जरूरी प्रक्रिया कब ?...देश के कई राज्य में जातीय जनगणना के बाद यूपी में भी इसे कराने की माँग लगातार ज़ोर पकड़ रही है, किन्तु वर्तमान बीजेपी सरकार भी इसके लिए तैयार नहीं लगती है, यह अति-चिन्तनीय, जबकि बीएसपी की माँग केवल यूपी में नहीं बल्कि केन्द्र को राष्ट्रीय स्तर पर भी जातीय जनगणना करानी चाहिए। .......देश में जातीय जनगणना का मुद्दा, मण्डल आयोग की सिफारिश को लागू करने की तरह, राजनीति का नहीं बल्कि सामाजिक न्याय से जुड़ा महत्त्वपूर्ण मामला है। समाज के गरीब, कमजोर, उपेक्षित व शोषित लोगों को देश के विकास में उचित भागीदार बनाकर उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए ऐसी गणना जरूरी।.......

बीएसपी सुप्रीमो ने उठाया बड़ा मुद्दा 

चुनाव से पहले ही सरकार को घेरने की तैयारी 

जातीय जनगणना से अब राजनीति की तैयारी

https://twitter.com/Mayawati/status/1689145034006749184?t=Xaains-xmsL8sZBpQSkuHw&s=19

https://twitter.com/Mayawati/status/1689144416110252032?t=1gtB9RxNC4E9e3wXe7giaA&s=19

https://twitter.com/Mayawati/status/1689144418165559296?t=hHZlCpIMy0uMQ9n0SfaMSQ&s=19

देश में बेरोजगारी, महंगाई समेत कई गंभीर मुद्दे है....जिन्हे सरकारों के मनोबल और विकास करके दूर किया जा सकता है...सरकारें इसपर काम भी करती है और दावे भी... लेकिन पूरा लाभ शायद आम लोगों तक नहीं पहुंच पाता है....लेकिन जनता जो भी बोलती है शायद सबसे बड़ा सच वहीं होता है....देश ने विकास हुआ है और हो भी रहा है ...लेकिन शायद हमे और ज्यादा विकास की जरूरत है....ताकि किसी भी वर्ग या जाति के लोगों को मुख्य धारा से जोड़ा जा सके और किसी भी वर्ग के लोगों की परेशानियों को दूर किया जा सके....अब देखने वाली बात ये होगी कि अगर जातीय जनगणना कराई जाती है और उससे जातियों की संख्या पता चलने पर क्या आम लोगों को इसका कुछ लाभ मिल सकेगा....या फिर इसका भी लाभ फिर किसी पार्टी को मिल जाएगा ....और हकदार मुह तांकता रह जाएगा...  हालांकि सरकार ने  जातिगत जनगणना कराए जाने को लेकर कोई रुचि नहीं दिखाई है ........


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