अमेरिकी राज्यों के 10वीं के 38,616 छात्रों पर सर्वे, मानसिक तनाव के दिखे संकेत!
डॉर्नसाइफ स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर एमी औचिनक्लॉस के नेतृत्व में किया गया शोध एक रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित हुआ। इसमें 14 अमेरिकी राज्यों के 10वीं के 38,616 छात्रों पर सर्वे किया गया।
पूरी दुनिया में मोबाइल की लत, सोशल मीडिया, डार्क वेब और तेजी से बदलती जीवनशैली के चलते पहले से ही तनाव झेल रहे किशोरों को जलवायु परिवर्तन ने अब एक नए संकट में डाल दिया है। एक सर्वे के अध्ययन के अनुसार, यह किशोरों में मानसिक परेशानियों को भी बढ़ा रहा है
निराशा-कम नींद की शिकायत ज्यादा
किशोरों ने उदासी, निराशा, नकारात्मक भावनाएं लगातार हावी होने, खेलकूद कम होने और कम नींद से जुड़ी हुई मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की खुलकर जानकारी दी। जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में बच्चों के बीच मानसिक रोगों का बढ़ता प्रसार, भोजन-पानी की असुरक्षा और वायु की गुणवत्ता में गिरावट शामिल है।
सर्वे से मिले संकेत
सर्वे में किशोर छात्रों के समूह के तहत कुछ ऐसे भी कारक मिले जो इन कारणों के चलते मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते और असर डालते थे, जैसे कि ज्यादा उम्र वाले बच्चों का कम उम्र वाले बच्चों के साथ पढ़ना, जाति, लिंग, स्कूल सुरक्षा और घरेलू आय के बारे में चिंताएं भी इसमें शामिल थीं। अध्ययन के दौरान विशेष रूप से यह तथ्य भी उभर कर सामने आया कि निम्न आय वाले समुदायों के किशोर, जो आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं, वह अपेक्षाकृत ज्यादा तनाव में हैं।
विचार करने की ज़रूरत
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार युवा मानसिक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए संसाधनों की मांग पूरा करने में पहले से ही कठिनाई हो रही है और आपदाएं बढ़ने के साथ मांग और बढ़ेगी। मनोवैज्ञानिकों, मनोचिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों की ओर से क्लिनिकल मैनुअल में जलवायु चिंता को आधिकारिक तौर पर मानसिक स्वास्थ्य विकार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है, लेकिन सर्वे के आधार पर यह अध्ययन साबित करता है कि अब मनोवैज्ञानिकों और मनोचिकित्सकों को स्थिति पर और पुनर्विचार करना चाहिए
डॉर्नसाइफ स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर एमी औचिनक्लॉस के नेतृत्व में किया गया शोध प्रिवेंटिव मेडिसिन रिपोर्ट्स जर्नल में प्रकाशित हुआ। इसमें 14 अमेरिकी राज्यों के 10वीं के 38,616 छात्रों पर सर्वे किया गया। अध्ययन के अनुसार, जिन बच्चों ने पांच साल में जलवायु आपदाओं जैसे तूफान, बाढ़, सूखा और आग का अनुभव किया है उनमें साथी बच्चों की अपेक्षा मानसिक परेशानी के 20% लक्षण अधिक देखे गए।
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