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हिन्दुस्तान आना चाहते थे हजरत इमाम हुसैन, संपादक की कलम से




आमिर हुसैन रिज़वी  


हजरत इमाम हुसैन के जन्मदिन पर विशेष 
लखनऊ: ‘कहा हुसैन ने हिन्दोस्ता जाने दे, न कर सितम मुझे दुनिया नई बसाने दे, वहां के लोग... हर एक दिल को मिलाने का काम करते हैं...’ 
इसे नौहे के जरिए हजरत इमाम हुसैन की हिन्दुस्तान आने की ललक झलकती है। हजरत इमाम हुसैन की इच्छा थी कि वह हिन्दुस्तान आएं।

शिया समुदाय के लोग इसके पीछे वजह मानते हैं कि हिन्दुस्तान में अमन पसंद लोग हैं। यहां के आवाम पर उन्हें भरोसा था कि वह यदि हिन्दुस्तान चले आए तो सभी लोगों का प्यार मिलेगा, लेकिन यजीद से जंग के कारण उनकी हिन्दुस्तान आने की ख्वाहिश पूरी नहीं हुई। 

हजरत इमाम हुसैन खूनखराबा नहीं चाहते थे, यजीद को खूब मौका दिया। उन्होंने छह महीने सफर किया, करबला इराक पहुंचे। जमीन खरीदी, वहां खेमे लगा दिए।

आज भी वहां हजरत इमाम हुसैन, हजरत अब्बास और अन्य शौहदाये के रोजे हैं। करीब पांच करोड़ लोग वहां जाकर जियारत करते हैं। हजरत मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाने के लिए करबला में यजीदी आतंकवाद के खिलाफ अपनी और अपने जानिसारों की शहादत पेश कर दुनिया को जुल्म के खिलाफ लड़ने का पैगाम दिया, जिसकी पैरवी करना हर मुसलमान का फर्ज है। 

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