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उत्तर भारत के अनेक राज्यों में जबर्दस्त बारिश


देश की राजधानी समेत उत्तर भारत के अनेक राज्यों में जबर्दस्त बारिश से बुरा हाल दिख रहा है। कई इलाके जलमग्न हो गए। हिमाचल प्रदेश में व्यास नदी में उफान से कई पुल टूट गए, मकान ढह गए, तो गाड़ियां बह गईं। दिल्ली में भी बरसात ने कई साल का रेकॉर्ड टूटा है  ये सिलसिला अभी जारी रहने का अनुमान है। मानसून की शुरुआत में ही उत्तर भारत में इतनी बारिश क्यों हो रही है? क्या ये सामान्य बात है? जानेमाने मौसम वैज्ञानिको ने बताया... तेज बारिश आना कोई बहुत असामान्य चीज नहीं है। अगर आप इतिहास के नजरिए से देखें तो बहुत ज्यादा बारिश होना और बहुत कम समय में, ये मानसून में ट्रेंड रहा है। लेकिन अभी जो हो रहा है वो थोड़ा एबनॉर्मल है। पहली बात ये है कि मानसून इस बार लेट से आया। इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट ने जो प्रीडिक्शन किया था लेट का, उससे काफी लेट आया है मानसून। उसके बाद जून के पहले 20 दिन में मानसून डेफिसिट रहा है। कुछ-कुछ देश के कुछ-कुछ इलाकों में, जैसे कि वेस्टर्न इंडिया और सदर्न इंडिया में मानसून डेफिसिट कुल 60 फीसदी थे। उसके बाद मानसून इतनी तेजी से आई, आजकल देख रहे हैं बारिश जितनी तेजी से हो रही है, अब मानसून सरप्लस की बात की जा रही है। डिलेड मानसून के बाद डेफिसिट रेन और फिर सडन सरप्लस, ये दिखा रहा है कि मानसून में जो तब्दीलियां आ रही हैं, उसको ये बहुत ही स्पष्ट दिखा रही हैं। पिछले 8 दिन में जो डेफिसिट था वो सरप्लस हो जाना, इसका मतलब की बहुत तेजी से बारिश होना। पिछले कुछ सालों में जो एबनॉर्मल ट्रेंड दिख रहा है मानसून में, अब वो बहुत-बहुत क्लियरली नहीं..... ये समझना जरूरी है। अगर आप इतिहास देखेंगे तो हमारे देश में अल नीनो के कारण ज्यादातर सूखा हुआ है। लेकिन अल नीनो के कुछ ऐसे भी साल हैं, जब बाढ़ बहुत आई। तो जहां तक अल नीनो का सवाल है, मान लीजिए अल नीनो की शुरुआत हो गई और उसका असर जुलाई-अगस्त से आना शुरू होगा। लेकिन मेरा जहां तक ख्याल है कि अल नीनो का इंपैक्ट इस साल के रबी सीजन पर और अगले साल की खरीफ पर ज्यादा होने की संभावना है, अल नीनो के कारण गर्मी भी बढ़ती है। हीटवेव, हाई टेंपरेचर जो दिसंबर में आ सकता है अल नीनो के कारण और जनवरी-फरवरी में हीटवेव आ सकता है। उसके कारण रबी की फसल में इंपैक्ट आने की संभावना है। आप देखेंगे तो अल नीनो की लाइफ एक-डेढ़ साल तक चलती है। तो इस बार भी कुछ एबनॉर्मल होगा। लेकिन जहां तक क्या नॉर्मल मानसून है, क्या एबनॉर्मल मानसून है, इसपर भी ध्यान रखने की जरूरत है।

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