गर्मी का सितम: एशिया, अफ्रीका में छूटेंगे पसीने
इस बार गर्मी अपना सितम ढायेगी, भारतीय मौसम विभाग ने इस साल अप्रैल से लेकर जून तक सामान्य से अधिक तापमान रहने का एक अनुमान जताया है। इस अनुमान का अभी से असर दिखना शुरू हो गया है गर्मी ने अपना रूप दिखाना शुरू कर दिया है और मैदानी इलाकों में तापमान बढ़ने लगा है।
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गर्मी से बचने की कर लें तैयारी
जैसा कि देश अप्रैल-जून की अवधि में अत्यधिक गर्मी के लिए तैयार है और तापमान पहले से ही बढ़ना शुरू हो गया है, शोधकर्ताओं ने खेती, निर्माण और अन्य क्षेत्रों में बाहरी श्रमिकों पर इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में चेतावनी दी है। भारत मौसम विज्ञान विभाग ने हाल ही में कहा था कि इस साल अप्रैल-जून में देश के बहुत से भागो में गर्मी से अधिकतम तापमान सामान्य से अधिक रहेगा और मध्य-पश्चिमी प्रायद्वीपीय इलाकों में सबसे बुरा असर पड़ने का अनुमान है। अनुमान है कि मैदानी इलाकों के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक गर्मी वाले दिन रहने की संभावना है।
शुष्क और उमस की गमी का अंतर
भारत के मौसम विभाग का अनुमान है कि अप्रैल से जून तक सामान्य से अधिक तापमान रह सकता है। जिसका असर दिखना शुरू हो गया है और मैदानी भागों में गर्मी से ताप बढ़ने लगा है। आईआईटी गांधीनगर में सिविल इंजीनियरिंग एंड अर्थ साइसेंस के एक प्रोफेसर ने वावा किया है कि शुष्क गर्मी को झेलना आसान है। इसमें पानी पीते ही शरीर ठंडा हो जाता है
लेकिन जब उमस वाली गर्मी होती है तो वाष्णीकरण कम हो जाता है और इससे शरीर को ठंडा होने में समय लगता है। उन्होंने कहा कि मौसम में शारीरिक श्रम करने से शरीर का तापमान ऐसे उच्च स्तर पर पहुंच जाता है, जहां गंभीर बीमारी के साथ मौत भी हो सकती है। भारतीय मौसम विभाग ने बढ़ती उमस से बचने के लिए काम के घंटे कम करने की सलाह दी है। इसके अलावा श्रमिकों को बेहतर विश्राम सुविधा देने की बात कही है।
एशिया और अफ्रीका में दिखेगा प्रभाव
गर्मी और उमस का असर अनुमान के अनुसार अफ्रीका और एशिया के देशो में ज़्यादा रहेगा। इसकी बड़ी वजह ग्लोबल वार्मिंग है। भविष्य में खेती और वानिकी की मांग से इसका असर और गंभीर होता जाएगा। अमेरिका स्थित पॉल जी एलन फैमिली फाउंडेशन के सह-नेतृत्व में मार्च 2024 में किया गया अध्ययन वन अर्थ जर्नल में प्रकाशित हुआ था। अध्ययन के अनुसार, दुनिया पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्यों को तोड़ने के करीब पहुंच रही है, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी और आर्द्रता का स्तर पहले से कहीं अधिक खराब हुआ है
800 मिलियन लोगों को सलाह
उष्णकटिबंधीय गर्मी बाहरी श्रमिकों को कैसे प्रभावित करती है, इसकी जांच करने वाले एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में पाया गया है कि एक डिग्री सेल्सियस अतिरिक्त गर्मी के लिए, लगभग 800 मिलियन लोग ऐसे क्षेत्रों में रहेंगे जहां पूरे वर्ष में भारी काम के घंटों में आधे से अधिक कटौती की आवश्यकता होगी। दूसरे शब्दों में, "अतिरिक्त गर्मी, गर्मी और आर्द्रता का एक डिग्री सेल्सियस, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में रहने वाले आठ लोगों में से एक की अधिकांश दिन के घंटों के दौरान (बाहर) सुरक्षित रूप से काम करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न करेगा," अध्ययन के सह-लेखक श्री मिश्रा ,नेचर पोर्टफोलियो के एक ऑनलाइन प्रकाशन, नेचर इंडिया के लिए एक टिप्पणी में लिखा।
उष्णकटिबंधीय गर्मी का असर
अमेरिका स्थित पॉल जी एलन फैमिली फाउंडेशन के सह-नेतृत्व में यह अध्ययन मार्च 2024 में वन अर्थ जर्नल में प्रकाशित हुआ था। अध्ययन के अनुसार, दुनिया पेरिस समझौते के तापमान लक्ष्यों को तोड़ने के करीब पहुंच रही है, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में गर्मी और आर्द्रता का स्तर पहले से कहीं अधिक मानव सहनशीलता सीमा के करीब पाया गया है। लेखकों ने कहा कि बढ़ती उमस भरी गर्मी से अफ्रीका और एशिया में बाहरी श्रमिकों पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना है, क्योंकि उनकी बड़ी कामकाजी उम्र की आबादी आने वाले दशकों में बढ़ने की संभावना है, साथ ही कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन पर उच्च निर्भरता भी है।
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