लखनऊ : बिजली निजीकरण के विरोध में विशाल महापंचायत
बिजली के निजीकरण के विरोध में 22 जून को राजधानी लखनऊ में हुई देश की पहली विशाल बिजली महापंचायत, जिसमें हजारों की संख्या में किसान, उपभोक्ता व बिजली कर्मचारी सम्मिलित हुए।
बिजली महापंचायत में निर्णय लिया गया कि अगर बिजली के निजीकरण हेतु टेंडर जारी हुआ तो उसी वक्त बिना कोई अगली नोटिस दिए प्रदेश के समस्त बिजली कर्मी अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार पर चले जाएंगे और सामूहिक जेल भरो आंदोलन प्रारंभ हो जाएगा। उपरोक्त आंदोलन के दौरान प्रदेश के विद्युत उपभोक्ता, किसान, शिक्षक, रेल कर्मी, राज्य कर्मी, सहित पूरे देश के बिजली कर्मी उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मियों के समर्थन में सड़कों पर उतरेंगे।
माननीय मुख्यमंत्री जी से अनुरोध किया गया है कि गरीबों के हित में, किसानो के हित में, युवाओं के हित में, बिजली कर्मियों के हित में, आरक्षण को बचाने के लिए व्यापक जनहित में बिजली के निजीकरण के प्रस्ताव को निरस्त किया जाए।
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वक्ताओं ने एक स्वर में बिजली के निजीकरण को जन विरोधी कदम बताते हुए इसे तत्काल वापस लेने की मांग की और चेतावनी दी कि यदि निजीकरण के विरोध में संघर्षरत उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मियों का उत्पीड़न और दमन करने की कोशिश की गयी तो किसान, मजदूर, आम उपभोक्ता खामोश नहीं रहेंगे और सड़कों पर उतर कर व्यापक आंदोलन चलाने के लिए विवश होंगे। संकल्प लिया गया कि निजीकरण का निर्णय जबतक वापस नहीं होता तब तक आंदोलन जारी रहेगें। उत्तर प्रदेश में पावर कारपोरेशन के दो डिस्काम के निजीकरण के विरोध में कर्मचारियों का विरोध अब बड़े स्तर पर आ गया है।
लखनऊ में डॉ. राम मनोहर लोहिया लॉ यूनिवर्सिटी के डॉ. भीमराव अंबेडकर सभागार में रविवार को महापंचायत में फैसला लिया गया कि बिजली कर्मियों की नौ जुलाई की राष्ट्रव्यापी सांकेतिक हड़ताल के बाद भी निजीकरण का फैसला नहीं बदला गया तो जेल भरो आंदोलन की शुरुआत होगी।
पूर्वांचल व दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के विरोध में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति की ओर से लखनऊ में आयोजित महापंचायत ने निर्णय लिया गया कि उत्तर प्रदेश में निजीकरण के विरोध में 9 जुलाई को देश के 27 लाख बिजली कर्मी एक दिन की राष्ट्रव्यापी सांकेतिक हड़ताल करेंगे। हड़ताल की तैयारी को लेकर 2 जुलाई को देश में व्यापक विरोध किया जायेगा। चेतावनी दी गई कि इसके बाद भी प्रबंधन ने फैसला नहीं बदला तो जेल भरो आंदोलन की शुरुआत की जाएगी। जेल भरो आंदोलन की तारीख अगले चरण में घोषित की जाएगी।
महापंचायत में प्रस्ताव पारित कर बताया गया कि उड़ीसा, भिवंडी, औरंगाबाद, जलगांव, नागपुर, मुजफ्फरपुर, गया, ग्रेटर नोएडा और आगरा आदि स्थानों पर निजीकरण का प्रयोग पूरी तरह असफल रहा है। इस असफल प्रयोग को उत्तर प्रदेश के 42 जनपदों की बेहत गरीब जनता पर थोपा जा रहा है। आगरा में निजीकरण के असफल प्रयोग से पॉवर कारपोरेशन को प्रति माह एक हजार करोड़ रूपये का नुकसान हो रहा है। टोरेंट पॉवर कम्पनी ने आगरा में पावर कारपोरेशन का 2200 करोड़ रूपये का बिजली राजस्व का बकाया हड़प लिया है और वापस नहीं किया है। अब निजी घरानों की नजर पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के 66 हजार करोड़ रूपये राजस्व बकाये पर है।
निजी घरानों को बिजली देने की मंशा
प्रस्ताव में कहा गया है कि इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 131 के अनुसार सरकारी कम्पनी का निजीकरण करने के पहले उसकी परिसम्पत्तियों का सही मूल्यांकन और राजस्व पोटेंशियल का मूल्यांकन किया जाना जरूरी है। संघर्ष समिति ने कहा कि 42 जनपदों की सारी जमीन मात्र 1 रूपये की लीज पर निजी घरानों को दी जा रही है। यह बड़ी लूट है। उप्र पॉवर ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष आरपी केन ने निजीकरण के विरोध में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति को समर्थन देने का ऐलान करते हुए कहा कि निजीकरण किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि निजीकरण के जरिए बिजली उपभोक्ताओं को फिर से लालटेन युग में ले जाने की तैयारी है।
रेल कर्मचारियों के राष्ट्रीय नेता शिव गोपाल मिश्र ने कहा कि यदि उप्र में बिजली कर्मचारियों पर निजीकरण थोपा गया तो सारे देश के रेल कर्मचारी, बिजली कर्मचारियों के साथ प्रदेश की जेलों को भर देंगे। संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ दर्शन पाल, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इण्डिया के कार्यकारी निदेशक रमानाथ झा, नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लॉइज एण्ड इंजीनियर्स के संयोजक सुदीप दत्त, ऑल इण्डिया पॉवर डिप्लोमा इंजीनियर्स फेडरेशन के अध्यक्ष आर के त्रिवेदी, ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के एके जैन आदि ने संबोधित किया। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों, बैंक कर्मचारियों, राज्य कर्मचारियों, शिक्षकों के प्रतिनिधियों ने महापंचायत को सम्बोधित किया।
पहली बार व्यापक तौर पर एकजुटता
देश के इतिहास में पहली बार बिजली के निजीकरण के विरोध में किसान, मजदूर, गरीब और मध्यमवर्गीय घरेलू उपभोक्ता एक साथ लामबन्द होकर आन्दोलन और सामूहिक जेल भरो अभियान का फैसला लिया है। महापंचायत में प्रस्ताव पारित किया गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बिजली सार्वजनिक क्षेत्र में रहना आवश्यक है। निजीकरण के बाद बहुराष्ट्रीय निजी कम्पनियों के आने से देश की बिजली ग्रिड सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
उत्पीड़न हुआ तो शुरू होगा जन आंदोलन
बिजली कर्मियों ने चेतावनी दी कि यदि आंदोलनरत बिजली कर्मियों का उत्पीड़न किया गया तो किसान, मजदूर और उपभोक्ता एकजुट होकर आन्दोलन करेंगे और निजीकरण का निर्णय वापस होने तक आन्दोलन जारी रखेंगे।
निजीकरण के पीछे भ्रष्टाचार का आरोप
वक्ताओं ने कहा निजीकरण के पीछे बड़े भ्रष्टाचार है । अवैध ढंग से नियुक्त किये गये ट्रांजैक्शन एडवाइजर ग्रान्ट थार्नटन के साथ मिली भगत में पॉवर कारपोरेशन के चेयरमैन, निदेशक वित्त और शासन के कुछ आला अधिकारियों ने आर एफ पी डॉक्यूमेंट बनवाकर विद्युत नियामक आयोग को भेजा था। इसे कई आपत्तियां लगाते हुए विद्युत नियामक आयोग ने वापस कर दिया है जो इस बात का सबूत है कि जल्दबाजी में किये जा रहे निजीकरण के पीछे गलत आकडें देकर भ्रष्टाचार की मंशा है। यह भी मांग की है कि कंसलटेंट की नियुक्ति, बढ़ा चढ़ा कर आरएफपी डॉक्यूमेंट में दिखाया गया घाटा और फर्जी आंकड़ा बनाने वाले अधिकारियों की सीबीआई से जांच कराई जाय।
सीबीआई से जांच की मांग
उप्र पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन द्वारा किए गए स्थानांतरणों पर बिजली कर्मियों ने आक्रोश व्यक्त किया। मुख्यमंत्री से मांग की है कि पावर कारपोरेशन में हुए बड़े पैमाने पर स्थानांतरण आदेशों के पीछे भ्रष्टाचार को देखते हुए इसकी सीबीआई जांच कराई जाए।
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