Spy Camera China : चीन की तीसरी 'आंख' पर निशाना
जासूसी से सुरक्षा के लिए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे देशों ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र संवेदनशील क्षेत्रों में चीनी सीसीटीवी (क्लोज सर्किट टेलीविजन कैमरा, closed circuit televission camera) के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा चुके हैं। ताकि उनके देश में चीन की जासूसी रोकी जा सके वहीं भारत ने भी चीन की इस आँख को लेकर अब इस दिशा में कदम आगे बढ़ाए हैं।
चीन पर लगेगी लगाम
चीन अपनी इस तीसरी आंख के जरिए तमाम देशों की गतिविधियों पर नजर रखता रहा है। भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश में इस समय तकरीबन 20 लाख सीसीटीवी कैमरे मौजूद हैं। अकेले देश के टॉप 15 शहरों में ही यह संख्या 15 लाख है।
अकेले दिल्ली में ही ढाई लाख से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे मौजूद हैं। इनमें से लगभग 80 फीसदी कैमरे चीन से मंगवाए गए हैं। वहीं सरकार ने सीसीटीवी कैमरों को लेकर नए नियम जारी कर दिए हैं। नए नियमों के तहत भारत में सीसीटीवी बेचने से पहले कड़े सुरक्षा मानकों का पालन करते हुए, उनका रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा, इस कदम के बाद चीन की जासूसी पर अंकुश लगेगा।
कई देश लगा चुके हैं बैन
अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसे देशों ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संवेदनशील क्षेत्रों में चीनी सीसीटीवी (क्लोज सर्किट टेलीविजन कैमरा) के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा चुके हैं।
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वहीं भारत ने भी अब कदम आगे बढ़ाए हैं। 09 अप्रैल को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MEITY) की तरफ से जारी नए नियमो के तहत देश में सीसीटीवी निमार्ताओं के लिए भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) से मान्यता प्राप्त लैब्स में 'आवश्यक सुरक्षा मापदंडों' के लिए सीसीटीवी कैमरों की टेस्टिंग को अनिवार्य बना दिया है।
बेस्ट टेक्निकल इंटेलिजेंस टूल्स हैं सीसीटीवी
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के पूर्व राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा कॉर्डिनेटर ने बताया कि सरकार ने यह नोटिफिकेशन निकाला है। वह कहते हैं कि अभी तक चीन से देश में आने वाले सीसीटीवी कैमरों के लिए कोई बाधा नहीं थी। चीन से आये कैमरे देश की सभी महत्वपूर्ण जगहों सरकारी इमारतों, एयरपोर्ट, राजमार्गों, हवाई अड्डों, मेट्रो रेल, तमाम मंत्रालयों में लगे हैं,
जिसमें रिकॉर्ड होने वाले डाटा पर कोई रोक नहीं थी। उनका कहना है कि ये सीसीटीवी कैमरा बेस्ट टेक्निकल इंटेलिजेंस टूल्स हैं, और हमारे देश में ऐसी डिवाइसेज पर कोई रोक न होना एक गंभीर सुरक्षा जोखिम है। लेफ्टिनेंट जनरल राजेश पंत (सेवानिवृत्त) बताते हैं कि जब वे प्रधानमंत्री कार्यालय के अधीन नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल की नेशनल साइबर सिक्योरिटी से जुड़े थे, तो लगातार इन पर बैन लगाने की पुरजोर मांग करते थे। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर संकट है। उन्होंने सरकार के इस कदम का स्वागत करते हुए कहा कि इससे सुरक्षा को मजबूती मिलेगी।
टेंपर प्रूफ हों कैमरे
नए संशोधनों मे बताना जरूरी होगा कि सिक्योरिटी ऑपरेशंस (जैसे चिप) में इस्तेमाल किए जा रहे जरूरी हार्डवेयर पार्ट्स किसी भरोसेमंद सोर्सेज से लिए गए हों। साथ ही इसका सोर्स कोड डिसक्लोज न किया गया हो। साथ ही ये कैमरे टेंपर प्रूफ हों और उनके साथ किसी तरह की छेड़छाड़ न की जा सकती हो। जांच के बाद यह सुनिश्चित हो सकेगा कि ये कैमरे कहीं जासूसी के लिए तो नहीं हैं। यही मापदंड मोबाइल फोन, लैपटॉप्स, सेट टॉप बॉक्स, पावर बैंक और स्कैनर पर भी लागू होते हैं। ये बीआईएस मापदंड केवल आग जैसे खतरों से बचाव के लिए अपनाए जाते रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े पहलुओं को अभी तक अनदेखा किया जाता रहा है।
सरकार ने जारी की थी चिंता
कुछ समय पहले संचार और इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री संजय धोत्रे ने वीडियो सिक्योरिटी सर्विलांस (वीएसएस) को लेकर लोकसभा को बताया था कि सरकारी संस्थानों में चीनी कंपनियों के लगभग दस लाख सीसीटीवी लगाए गए थे। "सीसीटीवी कैमरों के जरिए रिकॉर्ड किए गए वीडियो डाटा को विदेश में मौजूद सर्वर पर ट्रांसफर कर दिया जाता है, जो खतरा है।" वहीं ये वीएसएस खुफिया एजेंसियों के लिए मुश्किल भी बन रहे हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि चीनी कंपनियां कई मंत्रालयों और संगठनों में मौजूद सीसीटीवी के जरिए से पिछले दरवाजे से चीन को डाटा भेज रहे हैं।
चीन की ख़ुफ़िया नज़र पर रोक
कई प्रतिष्ठानों में सीसीटीवी कैमरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। चीनी की खुफिया एजेंसियों को डाटा भेजा जाना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर है। चीन खुफिया कानून, 2017 के अनुसार, ये कंपनियां अपने सभी डाटा और साइटों की जानकारी को चीनी खुफिया एजेंसियों के साथ साझा करने के लिए बाध्य हैं। चीनी सरकार के नियंत्रण वाली ये कंपनियां सीधे या अपनी भारतीय सहायक कंपनियों, ज्वाइंट वेंचर्स या डिस्ट्रीब्यूटर्स के जरिए वीएसएस हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर की सप्लाई करती हैं। रक्षा मंत्रालय भी इन चीनी सीसीटीवी पर गंभीर चिंता जता चुका है।
इन कैमरों पर मेड इन इंडिया लिखा होता है, और ये कैमरे वाई-फाई या सिम से कनेक्ट होते हैं। सीसीटीवी कैमरा बनाने वाली कंपनियों में हिकविजन प्रमुख हैं, जिसमें चीनी सरकार की हिस्सेदारी 41 फीसदी है। भारतीय कंपनी से साझेदारी के बाद हिकविजन के कैमरे देश की कई महत्वपूर्ण इमारतों में लगे हुए हैं
सरकार हुई सतर्क
इसे कैसे रोका जाए, इसे लेकर हाल ही में एक बैठक हुई। जिसके बाद केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सीसीटीवी कैमरों के इस्तेमाल को लेकर नए दिशा-निर्देश लाने का फैसला किया। अभी तक सरकार के पास इन चीनी कैमरों की जांच करने का कोई मैकेनिज्म उपलब्ध नहीं था। लेकिन दुनियाभर में चीनी कैमरों के जरिए हो रही जासूसी की खबरें आने के बाद सरकार सतर्क हुई। जिसके बाद इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने भारत में बेचे जाने वाले सीसीटीवी कैमरों के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया। लेकिन सीसीटीवी कैमरों की टेस्टिंग के लिए बड़े स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होगी।
लगा सकते हैं गोल्डन फायरवॉल
आंकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 20 लाख कैमरे हैं। इनमें से लगभग 80 फीसदी कैमरे चीन में बने हैं। लगभग 98 फीसदी कैमरे देश के हर कोने में सरकारी इमारतों में लगे हैं जिससे जासूसी का गंभीर खतरा पैदा होता। वहीं सरकार की तरफ से जारी अधिसूचना के मुताबिक भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) से मान्यता प्राप्त लैब्स में टेस्टिंग के अलावा क्वॉलिटी सर्टिफिकेशन भी जरूरी होगा। इससे पहले 6 मार्च को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सीसीटीवी खरीद की एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें सिक्योरिटी पैरामीटर्स की टेस्टिंग की जानकारी अनिवार्य थी। इसके अलावा कैमरे में लगे उन हार्डवेयर कंपोनेंट्स की सूचना देना भी जरूरी था।
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